मंदार हिल :- मंदार पर्वत भागलपुर शहर के दक्षिण में लगभग 45 किमी दूर भागलपुर-दुमका राजमार्ग पर मौजूद हैं। मंदार पर्वत भारत में बिहार राज्य के बाँका ज़िले में स्थित है। यह लगभग 700 फीट ऊँचा पहाड़ है। मंदार पर्वत की चोटी पर दो मन्दिर है पहला हिन्दू मन्दिर और दूसरा जैन मन्दिर मौजूद हैं। मंदार पर्वत को मदरांचल भी कहा जाता है। जब समुन्द्र मंथन हो रहा था तब समुन्द्र मंथन में मंदार हिल का इस्तेमाल किया गया था।
इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में भी दर्शाया गया हैं। मंदार पर्वत से जुडी एक कथा ये भी है की देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए राक्षसों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुन्द्र मंथन किया था , जिसमें एक एक कर 14 रत्न निकले थे। हिन्दुओं के लिए मंदार पर्वत भगवान विष्णु का पवित्र आश्रय स्थल है।
आदिवासी लोग मंदार पर्वत को सिद्धि क्षेत्र मानते हैं और मकरसक्रांति से एक दिन पहले यहाँ पर पूरी रात सिद्धि पूजा करते है, और मकरसक्रांति के अवसर पर सबसे बड़ा संताली मेला का भी आयोजन होता है । जिसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं। जैन धर्म को मानने वाले लोग मंदार पर्वत को प्रसिद्ध तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य से भी जुड़ा मानते हैं।
मंदार पर्वत के चट्टानों पर सैकड़ों प्राचीन उत्कीर्ण मूर्तियां, ध्वस्त चैत्य, गुफाएं और धार्मिक मंदिर और सांस्कृतिक गौरव के साक्ष मौजूद हैं। सदियों पुराना खड़ा मंदार पर्वत आज भी लोगो के आस्था और विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है। मंदार पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और पर्वत के पास का तालाब यहाँ के सुंदरता को और बढ़ा देती है। मंदार पर्वत(Mandar hill ) आने वाले पर्यटकों को यह स्थान काफी सुखद अनुभव देता है।
पापहरणी तालाब :- मंदार पर्वत पर पापहरणी तालाब है। इस तालाब का नाम पापहरणी इसलिए पड़ा की इस तालाब में कर्णाटक के एक कुष्ठ रोगी चोलवंशीय राजा ने मकर संक्रांति के दिन स्नान किया था, स्नान करने के बाद से उनका स्वास्थ ठीक हो गया था, तभी से इसे पापहरणी के रूप में जाना जाता है. बता दें कि इसके पहले पापहरणी तालाब मनोहर कुंड के नाम से जाना जाता था.
भगवान विष्णु – लक्ष्मी मंदिर :-पापहरणी तालाब के बीचों बिच माता लक्ष्मी और भगवान श्री हरि विष्णु का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु सर्प पे विश्राम कर रहे हैं और माता लक्ष्मी पैर दबा रही है , हर मकर संक्रांति पर यहां मेले का आयोजन होता है। मेले के पहले यात्रा भी होती है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते हैं.
मंदार पर्वत की कहानी :- चिरकाल में मधु-कैटभ दो असुर थे , जो बहुत अत्याचारी थे। जिनके अत्याचार से तीनो लोको में हाहाकार मचा हुआ था।
भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ दोनों असुर का वध कर दोनों का धड़ विपरीत दिशा में फ़ेंक दिया। धड़ अलग होने के बावजूद भी एक जुट होकर मधु-कैटभ बन गए। भगवान विष्णु ने आदि शक्ति का आह्वान किया तब माँ दुर्गा ने मधु-कैटभ का वध किया। कालांतर में भगवान विष्णु ने मधु-कैटभ को पृथ्वी लोक में लाकर मंदार पर्वत के निचे दवा दिया ताकि वह फिर से उत्पन न हो सके।
समुन्द्र मंथन क्यू हुआ :– विष्णु पुराण कथा के अनुसार एक बार देवराज इन्द्र अपनी किसी यात्रा से बैकुंठ लोक वापस लौट रहे थे और उसी वक्त दुर्वासा ऋषि बैकुंठ लोक से बाहर जा रहे थे । दुर्वासा ऋषि को ऐरावत हाथी में बैठे इन्द्रदेव को देखा तो उसे भ्रम हुआ कि हाथी में बैठा व्यक्ति त्रिलोकपति भगवान् विष्णु हैं। अपने इस भ्रम को सही समझ कर दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र को भगवान् विष्णु समझ कर फूलों की एक माला भेंट की लेकिन अपने मद और वैभव में डूबे देवराज इन्द्र वह माला अपने हाथी ऐरावत के सिर पर फेंक दिया और ऐरावत हाथी ने भी अपना सिर झटका तो वह माला ज़मीन पर गिर गया और वह माला ऐरावत के पैरों तले कुचला गया।
दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र की इस हरकत को देखा तो वह क्रोधित हो गए. उन्होंने इन्द्र द्वारा किये गए इस व्यवहार को दुर्वासा ऋषि ने अपमान समझा और साथ ही इसे देवी लक्ष्मी का भी अपमान समझ कर दुर्वासा ऋषि ने इन्द्र की श्रीहीन होने का श्राप दे डाला।
ऋषि द्वारा दिए गए श्राप के कुछ ही वक्त में इन्द्र का सारा वैभव समुद्र में गिर गया और दैत्यों से युद्ध हारने पर उनका स्वर्ग से अधिकार छीन लिया गया था। देवराज इन्द्र का ऐश्वर्य, धन और वैभव आदि हीन होने के बाद सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगे। इसके अंतराल क्षीर सागर में वासुकि नाग और मंदार पर्वत की मदद से समुन्द्र मंथन किया गया। इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुवे थे। मंथन के समय अमृत का सेवन देवताओं ने किया, विष का सेवन भगवान शिव ने किया था। जिस पर्वत पर मंथन हुआ था वह पर्वत बिहार के बांका जिला में है। मंदार पर्वत पर जाने के लिए सीढ़ियों ,रोपवे और डोली के सहारे जाते हैं
मंदार पर्वत पर सीता कुंड :- मंदार पर्वत पर सीता कुंड भी हैं। श्री राम जी जब वनवास गए थे, तब रामजी मंदार पर्वत पर रुके थे। यहीं पे माता सीता ने भगवान भास्कर की उपासना की थी , मंदार पर्वत के जिस जल कुंड का जल सूर्य देव को अर्ध्य दिया था। उस कुंड का नाम सीता कुंड पर गया।