
बॉलीवुड अभिनेत्री ममता कुलकर्णी जो की 90 की स्टार रहर रह चुकी हैं। आज 24 जनवरी की साम को अपना पिंड दान किया और पिंड दान कर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर पद संभालेगी। अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने आम जीवन का त्याग कर किन्नर बन गयी हैं। किन्नर बनने के लिए
अभिनेत्री ने पहले अपना पिंडदान प्रयागराज संगम में किया फिर और पिंडदान के बाद पट्टाभिषेक किया गया। उनका नाम बदलकर ममता कुलकर्णी का नया नाम ‘ममता नंद गिरी’ रखा गया हैं। जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर स्वामी जय अम्बानंद गिरी के साथ मुलाकात भी की थी और किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महाराज से मुलाकात की थी।
अभिनेत्री ममता कुलकर्णी :- अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने आम जीवन का त्याग कर किन्नर बन गयी हैं। किन्नर बनने के लिए अभिनेत्री ने पहले अपना पिंडदान प्रयागराज संगम में किया फिर और पिंडदान के बाद किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महाराज ने पट्टाभिषेक किया और उनकों नया नाम दे दिया यह नया नाम ममता कुलकर्णी को दिया गया हैं यामनी ममता नंद गिरी और अब चोटी कटी जाएगी। ममता कुलकर्णी मिडिया को बाचीत में कहा महादेव ,माँ काली और मेरे गुरु का ये आदेश थी ,ये उनकीे इक्षा थी। आज का दिन उन्होंने डिसाइड किया था। ममता कुलकर्णी ने कहा आगे महामंडलेश्वर की दीक्षा के लिए कठिन तप और समय लगता है, इस पद के लिए किसी गुरु के साथ जुड़कर अध्यात्म की शिक्षा लेनी पड़ती है। इस दौरान आपका आचरण, परिवार मोह त्यागना, साधना सब गुरु की देखरेख में होता है। जब गुरु को लगता है आवेदक संत बनने के लिए तैयार है तो गुरु जिस अखाड़े से जुड़े हुवे होते है। उन अखाड़ों में उन्हें महामंडलेश्वर की दीक्षा योग्यतानुसार डिलवई जाती है।
महामंडलेश्वर बनने की प्रक्रिया इस तरह है :- सबसे पहले अखाड़े को आवेदन देना पड़ता है। उसके बाद दीक्षा देकर संत बनाया जाता है। संन्यास काल के दौरान ही आवेदक को जमा धन जनहित के लिए देना पड़ता है।,इस प्रक्रिया को पूरा होने के बाद नदी किनारे मुंडन और फिर स्नान करवाया जाता है। फिर परिवार और खुद का तर्पण करवाया जाता है। पत्नी, बच्चों समेत परिवार का पिंड दानकर संन्यास परंपरा के मुताबिक, विजय हवन संस्कार करवाया जाता है।उसके बाद गुरु दीक्षा दी जाती है तब आवेदक की चोटी काट दी जाती है।
इसके बाद अखाड़े में दूध, घी, शहद, दही, शक्कर से बने पंचामृत से पट्टाभिषेक किया जाता है और अखाड़े की ओर से चादर भेंट की जाती है आवेदक को। ,जिस अखाड़े का महामंडलेश्वर बना है, उसमें उसका प्रवेश किया जाता है। फिर साधु-संत, आम लोग और अखाड़े के पदाधिकारियों को भोजन करवाकर दक्षिणा भी देनी पड़ती है।इसके अलावा, खुद का आश्रम, संस्कृत विद्यालय, ब्राह्मणों को नि:शुल्क वेद की शिक्षा देना होती है।