झारखण्ड जिलें का इतिहास

झारखण्ड :-झारखण्ड भारत का एक राज्य है जो बिहार राज्य से अलग होकर बना है। रांची इसकी राजधानी है।झारखण्ड की सीमाएँ की बात करे तो पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश एवं छत्तीसगढ़, उत्तर में बिहार, और दक्षिण में ओड़िशा हैं। लगभग सम्पूर्ण प्रदेश छोटानागपुर के पठार पर अवस्थित है। सम्पूर्ण भारत में वनों के अनुपात में प्रदेश एक अग्रणी राज्य माना जाता है। 15 नवम्बर 2000 ईस्वी में बिहार के दक्षिणी भाग से अलग झारखण्ड प्रदेश का सृजन किया गया था। इस राज्य के अन्य बड़े शहरों में बोकारो, धनबाद एवं जमशेदपुर शामिल है। झारखंड का मतलब है – जंगल झाड़ वाला क्षेत्र। मुगल काल में झारखण्ड को कुकरा नाम से भी जाना जाता था। ब्रिटिश के शासन काल में झारखंड नाम से जाना जाने लगा था । पुराण कथाओं में भी इतिहास का हिस्सा मानने वाले इतिहासकारों के अनुसार वायु पुराण को भी मुरण्ड तथा विष्णु पुराण में मुंड भी कहा गया था ।जब झारखण्ड राज्य बिहार से अलग राज्य बना था तब झारखड में कुल 18 जिला थे वर्तमान में 24 जिले हो गए हैं सभी जिलें 5 मंडलो में विभाजित है।

झारखण्ड जिलें का नाम :- बोकारो, धनबाद, जामताड़ा, देवघर,चतरा, दुमका, गढ़वा, गुमला ,हजारीबाग, पश्चिम सिंहभूम , लातेहार, साहिबगंज, पूर्वी सिंहभूम, गिरिडीह, लोहरदगा, कोडरमा, पलामू, रामगढ़, रांची, गोड्डा, खूंटी, सरायकेला खरसावां, सिमडेगा , पाकुड़ अदि 24जिलों का नाम है

झारखण्ड का इतिहास :- प्राचीन कल :- झारखण्ड राज्य के हजारीबाग जिले में लगभग 5000 साल पुराना गुफा में चित्र मिला है। झारखण्ड राज्य में ईसा पूर्व 1400 काल के मिट्टी के बर्तन और लोहे के औज़ार के अवशेष मिले हैं। 325 ईसा पूर्व में भारत के उत्तरी इलाके बिहार से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया मुण्डा और भूमिज जनजातियों द्वारा शुरू कर दिया गया था। छोटानागपुर में रिसा मुण्डा प्रथम मुण्डा जनजातीय नेता था, जिसने राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू की थी ।भूमिज जनजाति ने बड़ाभूम,धालभूम, सिंहभूम पंचेत और मानभूम में भूमिज साम्राज्य की स्थापना की गयी थी, जो झारखंड,ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों तक फैली हुइ थी। भूमिजों ने ब्रिटिश शासन के आगमन तक शासन किया था । यह मगध, मौर्य और गुप्त राजवंशों जैसे साम्राज्यों के शासन के अधीन भी था। इन राजवंशों के शासन में प्रशासन , कला, संस्कृति और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण प्रगति हुई थी जिससे क्षेत्र के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को आकार मिल गया था । झारखंड का प्राचीन इतिहास इसके लचीले निवासियों का प्रमाण भी है, जो की कई विदेशी आक्रमणों और सत्ता में बदलाव आने के बावजूद अपनी अनूठी संस्कृति तथा परंपराओं को बनाए रखने में कामयाब रहे थे जो आज भी राज्य के विविध सांस्कृतिक ताने-बाने में दिखाई पड़ती हैं।

मध्यकाल :- मध्यकाल में झारखण्ड राज्य में चेरो राजवंश और नागवंशी राजवंश राजाओं का शासन हुआ करता था। मुगल का प्रभाव झारखण्ड राज्य में सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान पहुंचा तब 1574 में राजा मानसिंह ने इस पर आक्रमण किया था। मध्य काल में छोटानागपुर महान नागवंशी राजा दुर्जन साल थे, उनके शासन काल में ही मुगल शासक जहांगीर के समकालीन के सेनापति ने इस राज्य में आक्रमण किया था। राजा मेदिनी राय ने 1658 से 1674 तक पलामू क्षेत्र पर शासन किया था ।

आधुनिककाल :- आधुनिककाल में झारखण्ड में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी का प्रभाव 1765 के बाद पड़ा था । ब्रिटिश ने सर्वप्रथम धालभूम, मानभूम, बड़ाभूम, और झाड़ग्राम के रियासतों पर आक्रमण कर झारखण्ड में प्रवेश किया था । आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद ही छोटा नागपुर पठार के कई राज्यों में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन में आ गए थे । उनमें रामगढ़ रियासत, गागंपुर, नागवंश रियासत,खरसुआं, जाशपुर, साराईकेला, सरगुजा शामिल थे। ब्रिटिश के शासन में स्थानीय नागरिकों पर काफी अत्याचार कियागया साथ ही अन्य प्रदेशों से आने वाले प्रवासी का वर्चस्व भी था। ब्रिटिशों के शासन कल में ब्रिटिशों के खिलाफ बहुत से विद्रोह हुए, इनमें से कुछ प्रमुख विद्रोह थे:- 1766–1789: जगन्‍नाथ सिंह पातर और भूमिज सरदार-घटवाल-पाइक के नेतृत्व में भूमिजों का पहला चुआड़ विद्रोह; राजा जगन्नाथ धल का विद्रोह, 1769 रघुनाथ महतो का विद्रोह, 1770–1771 चेरो बिद्रोह पलामू के जयनाथ सिंह के नेतृत्व में हुआ था ,1772-1780पहाड़िया विद्रोह,1780–1785 तिलका मांझी के नेतृत्व में मांझी विद्रोह जिसमें भागलपुर में 1785 में तिलका मांझी को फांसी दी गयी थी।1789-1831: भूमिजों का विद्रोह ,1793–1796: मुंडा विद्रोह रामशाही के नेतृत्व में हुआ था। 1795–1821 तमाड़ विद्रोह, 1800–1802 मुंडा विद्रोह, 1812 मुंडल सिंह और बख्तर साय के नेतृत्य में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बिरुद्ध विद्रोह किया गया ,1831–34 भूमिज विद्रोह बड़ाभूम के गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में हुआ था। 1831–32 कोल विद्रोह, 1832–33 खेवर विद्रोह भागीरथ, दुबाई गोसाई, एवं पटेल सिंह के नेतृत्व में किया गया था। 1855 लार्ड कार्नवालिस के खिलाफ सांथालों का विद्रोह,1855–1860 सिद्धू कान्हू के नेतृत्व में संथालों के द्वारा विद्रोह ,1857 नीलांबर-पीतांबर का पलामू में विद्रोह, 1857 पाण्डे गणपत राय,ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव,शेख भिखारी, टिकैत उमराँव सिंह एवं बुधु बीर का सिपाही विद्रोह के दौरान आंदोलन किया था ,1874 खेरवार आंदोलन भागीरथ मांझी के नेतृत्व में ,1880 खड़िया विद्रोह तेलंगा खड़िया के नेतृत्व में,1895–1900: बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा विद्रोह किया गया था। इन सभी भारतीय विद्रोहों को ब्रिटिश सेना के फौजों की भारी तादाद द्वारा इसे निष्फल कर दिया गया था। फिर से 1914 में जातरा भगत के नेतृत्व में लगभग छब्बीस हजार आदिवासियों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया गया था जिससे प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने आजादी के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन का शुरवात किया था।

झारखण्ड का खनिज भंडार :-झारखंड भारत का एक खनिज से समृद्ध राज्य है।झारखण्ड में कोयला, अभ्रक, बॉक्साइट, लौह , चूना पत्थर, तांबा, ग्रेफाइट,इत्यादि अन्य खनिजों का घर है। इन सभी खनिजों से झारखण्ड राज्य को भारी आय होती है, तथा राज्य के औद्योगिक विकास में भी योगदान हैं।

 

कोयला :- झारखण्ड भारत का सबसे अत्यधिक कोयला उत्पादक राज्य है। इस राज्य में कुल कोयला भंडार लगभग 25% पाया जाता है। झारखंड में कोयले के कई प्रमुख क्षेत्र हैं, जैसे में बोकारो, जामाडोबा,झरिया और पकरी बरवाडीह हैं।

अभ्रक :- झारखंड भारत का सबसे अधिक अभ्रक उत्पादक राज्य है। इस राज्य में कुल अभ्रक भंडार करीब 80% पाया जाता है। झारखंड में अभ्रक के प्रमुख क्षेत्र हैं, जिसमें गिरिडीह,कोडरमा, और रांची हैं।

लौह अयस्क :- झारखंड राज्य भारत का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है। इस राज्य के कुल लौह अयस्क भंडार का करीब 17% पाया जाता है। झारखंड में लौह अयस्क के प्रमुख स्थान हैं, जिनमें मधुपुर, लोहरदगा, और नोआमुंडी हैं।

बॉक्साइट :- झारखंड राज्य भारत का दूसरा सबसे बड़ा बॉक्साइट उत्पादक है। इस राज्य में कुल बॉक्साइट भंडार का करीब 10% पाया जाता है। झारखंड में बॉक्साइट के प्रमुख क्षेत्र हैं, जिसमें खूंटी और चाईबासा हैं।

 

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