जाने नालंदा जिला का इतिहास और ऐतिहासिक धरोहर

नालंदा :- नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है। नालंदा जिला का मुख्यालय बिहार शरीफ है। नालंदा एक प्रशंसित महाविहार था जो प्राचीन भारत में एक बड़ा बौद्ध मठ भी था। नालंदा जिला बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में है और पांचवीं शताब्दी से लेकर 1200 सीई तक सीखने का केंद्र था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर है। नालंदा जिला प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है।नालंदा जिला में विश्व के सबसे पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौज़ूद है इस विश्वविद्यालय अन्य देशों से छात्र अध्ययन के लिये भारत आया करते थे। महावीर और बुद्ध कई बार नालन्दा मे ठहरे थे। कहा जाता है कि महावीर ने मोक्ष की प्राप्ति पावापुरी मे किया , जो नालन्दा जिला में स्थित है।

बुद्ध के मुख्य छात्रों मे से एक, शारिपुत्र का जन्म नालन्दा जिला में हुआ था। नालंदा पूर्व में अस्थामा पश्चिम में तेल्हारा दक्षिण में गिरियक उत्तर में हरनौत है। विश्‍व के प्राचीनतम विश्‍वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालन्‍दा बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्‍थल भी है।नालंदा जिला में पर्यटक विश्‍वविद्यालय के अवशेष, नव नालंदा महाविहार, संग्रहालय और ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल देख सकते है।

नालंदा जिला के आस-पास में भी घूमने के लिए बहुत से पर्यटक स्‍थल है। पावापुरी, गया, राजगीर और बोध गया यहां के नजदीकी पर्यटन स्थान है। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में नालंदा जिला आकर जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में जीवन व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध ने भी यहाँ उपदेश दिया था। भगवान महावीर भी नालंदा जिला में रहे थे। प्रसिद्ध बौद्ध शारिपुत्र का जन्म यहीं पर हुआ था।

नालंदा जिला के राजगीर में गर्म पानी के झरने है, इसका निर्माण कहा जाता है की राजा बिम्बिसार ने अपने शाषण काल में करवाया था, राजगीर नालंदा का पर्यटक स्‍थल है, ब्रह्मकुण्ड, सरस्वती कुण्ड और लंगटे कुण्ड यहाँ पर है, कई मन्दिर भी है यहाँ चीन का मन्दिर, जापान का मन्दिर आदि. नालंदा जिले में जामा मस्जिद भी है जॊ के बिहार शरीफ में है। यह मस्जिद बहुत ही पुराना और विशाल है।

नालंदा जिले का क्षेत्रफल 2,355 वर्ग किलोमीटर है। 2011 जनगणना के आंकड़ों के अनुसार नालंदा की जनसंख्या 28.78 लाख है और यहां प्रति वर्ग किलोमीटर 1,222 लोग रहते हैं। कृषि अर्थव्यवस्था इस राज्य की रीढ़ है, जिसमें अधिकांश आबादी कृषि करते है। कृषि में चावल, दालें, आलू ,गेहूं, मक्का, फल और सब्जियां यहां की प्रमुख फसलें हैं. तत्कालीन समय में रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस द्वारा नालंदा में तोपखाने के गोले बनाने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय द्वारा 41 भारतीय आयुध कारखानों में से एक है , जो नालंदा जिला में भी स्थापित किया गया है. नालंदा के हरनौत ब्लॉक में रेलवे कोच रखरखाव संयंत्र है।

नालंदा विश्‍वविद्यालय (Nalanda University) :- नालंदा विश्‍वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक विख्यात और महत्वपूर्ण केंद्र था। प्राचीन भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में कुमारगुप्त प्रथम ने करवाया था। इतिहास के अनुसार, सन् 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद इसे नष्ट कर दिया गया था।

भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालय आज भले ही विश्‍व के टॉप शैक्षणिक संस्‍थापनों में शामिल न हो पर एक समय ऐसा था, जब यहा देश भर में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। भारत में ही दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय खोला गया था, जिसे हम नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के नाम से जानते हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में की गयी थी।

नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के नालंदा जिला में स्थित इस विश्वविद्यालय में आठवीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच दुनिया के कई देशों से छात्र पढ़ने आया करते थे। इस विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ा करते थे, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, तुर्की और फारस से आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय में करीब दो हजार शिक्षक पढ़ाते थे।

इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम ने करवाई थी। नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक इस विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय में प्रसिद्धि थी, लेकिन अब यह एक खंडहर बनकर रह गया है, जहां दुनियाभर से लोग घूमने के लिए आया करते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में तीन सौ कमरे थे , सात बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए नौ मंजिला एक विशाल पुस्तकालय भी था, जिसमें तीन लाख से भी अधिक किताबें हुआ करती थीं।

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश परीक्षा अत्यंत कठिन थी। इसमें सिर्फ प्रतिभाशाली छात्र ही प्रवेश कर सकते थे। इसके लिए उन्हें तीन कठिन परीक्षाऔ को उत्तीर्ण करना होता था। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य दरवाजा था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर भी थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां को स्थापित की थीं, जो अब नष्ट हो गया हैं। नालंदा विश्वविद्यालय की दीवारें बहुत चौड़ी हैं। तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला कर पूरी तरह से नष्ट कर दिया था । कहा जाता हैं कि यहां के पुस्तकालय में इतनी किताबें थीं कि पूरे तीन महीने तक आग धधकती रही थी। इसके अलावा उसने कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला था।

 

 

 

 

 

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