मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को है :-मकर संक्रांति पंचांग के अनुसार 15 जनवरी 2024 को दिन सोमवार को मनाया जायेगा। इस दिन सूर्य देव प्रातः 02 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। हिंदू धर्म में हर माह आने वाले व्रत-त्योहारों का विशेष महत्व रहते हैं । हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह में मकर संक्रांति के त्योहार का खास महत्व होता है। मकर संक्रांति पर गंगा स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में हर तरह कष्टों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है। मकर संक्रांति को देशभर के कई जगहों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। पंजाब में इसे लोहड़ी और असम में माघ बिहू पर्व मनाया जाता है। उत्तर भारत में इस त्योहार को खिचड़ी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है वही गुजरात और महाराष्ट्र में इसे उत्तराणय के नाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति शुभ संयोग :-15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति पर 77 सालों के बाद रवि योग और वरीयान योग का संयोग बन रहा है। इस दिन बुध और मंगल एक ही राशि धनु में विराजमान रहेंगे। पांच साल बाद मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में सूर्य संग शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होग। वरीयान योग – प्रात: 02.40 – रात 11.11 (15 जनवरी 2024) रवि योग – सुबह 07.15 – सुबह 08.07 (15 जनवरी 2024)
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व :- मकर संक्रांति के त्योहार का ज्योतिष में विशेष महत्व माना जाता है। मकर संक्रांति के ज्योतिषीय महत्व के साथ-साथ इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बड़ा माना जाता है। पौराणिक लाथाओं के अनुसार सूर्यदेव शनिदेव के पिता हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जहां वह एक महीने तक रहते हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। इस तरह मकर संक्रांति को पिता और पुत्र के मिलन के रूप में देखा जाता है। वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने असुरों के आतंक से पृथ्वी लोक के वासियों को मुक्ति कराने के लिए असुरों का संहार कर उनके सिरों को काटकर मंदार पर्वत पर गाड़ दिया था। तब से ही मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। इसके अलावा मकर संक्रांति नई ऋतु के आगमन के तौर पर भी मनाया जाता है। मकर संक्रांति से ही ऋतु में बदलाव आने लगता है और शरद ऋतु की विदाई होने लगती है तथा बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है।