पहला दिन नहाय खाय दूसरा दिन खरना और आज तीसरा दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी है। षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और कल सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य यानि जल अर्पित कर व्रत का सम्पन हो जाएगी। व्रत समाप्ति के बाद सभी में प्रसाद का वितरण किया जायेगा। आज के दिन ठेकुआ बनेगा और चावल के आटा का लड्डू । ठेकुआ को आटे ,घी ,गुड़ से तैयार किया जाता है। आज सुबह सभी महिलाएं जल्दी उठकर घर की साफ सफाई करके नहा धोकर संध्या अर्ध्य से पहले ठेकुआ और चावल के आटा का लड्डू का प्रसाद तैयार करके डाला सजाया जायेगा।
डाला सजाने के लिए बांस की टोकरी या दउरा और बांस या ताम्बे की सुप को धो कर धुप में सूखा कर। पांच तरह का फल ,केला ,पानी वाला नारियल ,पानी फल ,डाभ, निम्बू ,गन्ना,हल्दी ,अदरक का हरा पौधा,पान के पत्ते, साबुत सुपाड़ी, पत्ते वाली मूली ,शकरकंदी और सुथनी को भी साफ पानी से धोकर सुप में सिंगार करके यानि सिंदूर से हरेक सुप पर पांच बार टिक्का लगा कर उसमे अक्षत और चना फुला हुआ रखकर सरे धोये हुए फल सारि सामग्री एक एक कर रखेंगे ,पांच -पांच ठेकुआ और एक -एक चावल के आटे की लड्डू ,और पचमेवा रखकर सुप को सजा लिया जायेगा। उसके बाद बांस की टोकरी या दउरा में अक्षत और कोई एक फल डालकर अब उसमे सुप को सजा कर साफ कपड़े से बांध कर डाला तैयार कर घर का पुरुष अपने हाथो से सर के ऊपर उठाकर छठ घाट पर ले जायेगे । छठ घाट की और जाते हुए रास्ते में जिसे छठ माता की गीत आता है वे महिलाये छठ का गीत गाते हुए जाती है।घाट पर जाने के बाद घाट पूजा किया जाता है नदी से मिटटी निकाल कर छठ माता का जो चौरा बना रहता है उस पर पूजा का सारा सामान रखकर दीप ,अगरबत्ती जलाते है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान एक सुप लेकर घुटने भर पानी में जाकर खड़े हो जाते है और डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा करती है। और छठ पूजा की डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद डाला लेकर घर आ जाते है। फिर इसी प्रकार सुबह सुबह घाट पे जाते है और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य यानि जल अर्पित कर व्रत का सम्पन हो जाता है।